आज के इस पोस्ट में हम भारत में जितनी भी कमांडो फोर्स है उनके बारे में विस्तृत बात करने वाले हैं| इसीलिए इस पोस्ट का शीर्षक भी भारत में कौन-कौन सी कमांडो फोर्स हैं – Commandos in Indian Forces है| भारत में कोबरा कमांडो,गरुड़ कमांडो , एयर फोर्स के गरुड़ कमांडो, भारतीय नेवी के मार्कोस कमांडो, स्पेशल प्रोटक्शन ग्रुप एसपीजी कमांडो जैसी तमाम कमांडो फोर्स है| भारत में तीनों सेनाओं भारतीय जल सेना भारतीय थल सेना एवं भारतीय वायु सेना के अतिरिक्त केंद्रीय पुलिस सेवाएं तथा कई सारे अर्धसैनिक बल भी हैं| हर सैन्य बल के पास अपने अपने दायित्व है और वह अपने अपने दायित्व के अनुसार देश की सेवा में लगे हैं| कुछ सैन्य बलों को देश की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर तैनात किया गया है| कुछ सैन्य बल देश की आंतरिक समस्याओं के समाधान में सहयोग करते हैं| कुछ सैन्य बलों को औद्योगिक सुरक्षा में लगाया गया है तो कुछ सैन्य बल भारत में नक्सलवाद से लगातार जूझ रहे हैं और नक्सलवाद का खात्मा करते जा रहे हैं| कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरा देश अच्छी तरीके से संचालित करने में भारतीय सेनाओं तथा भारतीय सैन्य बलों का योगदान है
इन सेना तथा अर्धसैनिक बलों में एक स्पेशल दस्ता होता है जिन्हें हम कमांडो के नाम से जानते हैं| इन सेनाओं के दायित्व में जो चुनौतीपूर्ण कार्य होते हैं तथा जो खतरे और जोखिम से भरे होते हैं वह कार्य इन स्पेशल दस्तों से लिए जाते हैं| प्रधानमंत्री की सुरक्षा से लेकर के राष्ट्रपति की सुरक्षा, आतंकवादियों से निपटने से लेकर के नक्सलवादियों के दमन इन स्पेशल दस्तों का अहम योगदान होता है| इस पोस्ट में यही जानने का प्रयास करेंगे कि भारत में कौन-कौन सी कमांडो फोर्स हैं – Commandos in Indian Forces
सीआरपीएफ Cobra कमांडो फोर्स
केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स या CRPF का देश के आंतरिक सुरक्षा में बहुत बड़ा योगदान है| कोबरा कमांडो सीआरपीएफ के वो स्पेशल कमांडो होते हैं जिन्हें संघर्ष पूर्ण क्षेत्रों में अपनी सेवाओं को देने के लिए तथा अपने कौशल को प्रदर्शित करने के लिए जाना जाता है| सीआरपीएफ के अधिकारियों तथा सिपाहियों का शारीरिक और मानसिक रूप से परीक्षण करके उन्हें कोबरा कमांडो दस्ते में डाला जाता है| सीआरपीएफ अपने कोबरा कमांडो को बहुत स्पेशल ट्रेनिंग देती है| नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में चुनौतियों से निपटने के लिए कोबरा कमांडो को विशेष रूप से जाना जाता है | इन्हें गुरिल्ला युद्ध के लिए खास तौर पे प्रशिक्षण दिया जाता है ।सीआरपीएफ की कमांडो फोर्स कोबरा (COBRA) कमांडो बटालियन फॉर रिज्योल्यूट एक्शन, नक्सल समस्या से लड़ने के लिए बनाई गई है। ये दुनिया के बेस्ट पैरामिलिट्री फोर्सेस में से एक है, जिन्हें विशेष गोरिल्ला ट्रेनिंग दी जाती है। दिल्ली में संसद और राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा के लिए भी इन्हें तैनात किया गया है।
BSF The Creek Crocodile सीमा सुरक्षा बल क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो
सीमा सुरक्षा बल के The Creek Crocodile Commandos कच्छ के रण में खासतौर से दलदली इलाकों में जो पाकिस्तान की सीमा से सटे हुए हैं अपनी सेवाएं देते हैं| इन्हें क्रोकोडाइल कहने के पीछे कारण यही है कि यह कमांडोज घंटों दलदली जमीन में अपने रूप को छुपा कर के बैठे रहने के लिए स्पेशल रूप से ट्रेन किए जाते हैं| सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की एक विशेष इकाई, क्रीक क्रोकोडाइल कमांडो का समूह, कच्छ के रण के क्रीक क्षेत्रों में गश्त और परिचालन कर्तव्यों के लिए तैनात किया गया है।
इंडियन मरीन कमांडो – मार्कोस
भारत के मार्कोस (मरीन) कमांडो सबसे ट्रेंड और मार्डन माने जाते हैं। मार्कोस को दुनिया के बेहतरीन यूएस नेवी सील्स की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है। मार्कोस कमांडो बनाना आसान नहीं है। इसके लिए सेलेक्ट होने वाले कमांडोज को कड़ी परीक्षा से गुजरना होता है। 20 साल उम्र वाले प्रति 10 हजार युवा सैनिकों में एक का सिलेक्शन मार्कोस फोर्स के लिए होता है। इसके बाद इन्हें अमेरिकी और ब्रिटिश सील्स के साथ ढाई साल की कड़ी ट्रेनिंग करनी होती है। देश के मरीन Commandos जमीन, समुद्र और हवा में लड़ने के लिए पूरी तरह से सक्षम होते हैं।
अमेरिकी नेवी सील्स के साथ ट्रेनिंग
अमेरिकी सील्स कमांडो फोर्स और इंडियन मार्कोस फोर्स का आपस में गहरा रिश्ता है। दोनों देशों के बीच आपसी ट्रेनिंग का करार है। मार्कोस फोर्स का गठन नेवी सील्स की तर्ज पर किया गया है। अमेरिकी सील्स का नाम सी. एयर एंड लैंड से बना है। यानी इसके ट्रेंड कमांडो तीनों स्थानों पर किसी भी ऑपरेशन को अंजाम देने में सक्षम होते हैं। 2011 में पाकिस्तान के एबटाबाद में दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी ओसामा बिन लादेन खात्मा यूएस नेवी सील्स के कमांडोज ने ही किया था।
हाथ-पैर बंधे होने पर भी तैर सकते हैं मार्कोस
मार्कोस इंडियन नेवी के स्पेशल मरीन कमांडोज हैं। स्पेशल ऑपरेशन के लिए इंडियन नेवी के इन कमांडोज को बुलाया जाता है। ये कमांडो हमेशा सार्वजनिक होने से बचते हैं। मार्कोस हाथ पैर बंधे होने पर भी तैरने में माहिर होते हैं। नौसेना के सीनियर अफसर की मानें तो परिवार वालों को भी उनके कमांडो होने का पता नहीं होता है। मार्कोस का मकसद आतंकियों को उन्हीं के तरीके से मारना, जवाबी कार्रवाई, मुश्किल हालात में युद्ध करना, लोगों को बंधकों से मुक्त कराना जैसे खास ऑपरेशनों को पूरा करना है। मुबंई हमले में मार्कोस ने भी आतंकियों को काबू किया था।
एनएसजी (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड) : ब्लैक कैट कमांडो – Black Cat Commando
एनएसजी राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड NSG Commando (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड) देश के सबसे अहम कमांडो फोर्स में एक है जो गृह मंत्रालय के अंदर काम करते हैं। आतंकवादियों की ओर से आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर लडऩे के लिए इन्हें विशेष तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। 26/11 मुंबई हमलों के दौरान एनएसजी की भूमिका को सभी ने सराहा था। इसके साथ ही वीआईपी सुरक्षा, बम निरोधक और एंटी हाइजैकिंग के लिए इन्हें खासतौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इनमें आर्मी के लड़ाके शामिल किए जाते हैं, हालांकि दूसरे फोर्सेस से भी लोग शामिल किए जाते हैं। इनकी फुर्ती और तेजी की वजह से इन्हें ब्लैक कैट भी कहा जाता है।
1984 में किया गया एनएसजी का गठन
एनएसजी को 16 अक्टूबर 1984 में बनाया गया था ताकि देश में होने वाली आतंकी गतिविधियों से निपटा जा सके। एनएसजी का मूल मंत्र है सर्वत्र सर्वोत्तम सुरक्षा। कमांडोज एनएसजी को नेवर से गिव अप भी कहते हैं। लेकिन ब्लैक कैट कमांडो बनना कोई आसान काम नहीं है। काली वर्दी और बिल्ली जैसी चपलता के चलते इन्हें ब्लैक कैट कहा जाता है। हर किसी को ब्लैक कैट कमांडो बनने का मौका नहीं मिलता है। इसके लिए आर्मी, पैरा मिलिट्री या पुलिस में होना जरूरी है। आर्मी से 3 और पैरा मिलिट्री से 5 साल के लिए जवान कमांडो ट्रेनिंग के लिए आते हैं।
देश में करीब 14500 एनएसजी Commando
देश में करीब 14500 एनएसजी कमांडो हैं, जिन्हें ढाई साल की कड़ी ट्रेनिंग के बाद तैयार किया जाता है। लेकिन ये ट्रेनिंग इतनी मुश्किल होती है कि आधे तो कुछ ही महीनों में छोड़कर चले जाते हैं। ट्रेनिंग के दौरान इन्हें उफनती नदियों और आग से गुजरना, बिना सहारे पहाड़ पर चढऩा पड़ता है। भारी बोझ के साथ कई किमी की दौड़ और घने जंगलों में रात गुजारना भी इनकी ट्रेनिंग का हिस्सा है।
अत्याधुनिक हथियारों से रहते हैं लेस
अत्याधुनिक हथियारों से लैस इस फोर्स को हवाई क्षेत्र में हमला करने, दुश्मन की टोह लेने, हवाई आक्रमण करने, स्पेशल कॉम्बैट और रेस्क्यू ऑपरेशन्स के लिए खास तौर पर तैयार किया जाता है। आमतौर पर चार गरुड़ कमांडो मिलकर एक छोटा दस्ता बनाते हैं जिसे ट्रैक कहते हैं। चार-चार कमांडो के ऐसे ही तीन ट्रैक बनाए जाते हैं। पहला ट्रैक दुश्मन पर हमला बोलता है, जबकि कमान नंबर टू के पास होती है। इतने में नंबर थ्री टेलिस्कॉपिक गन से निशाना लगाता है, जबकि आखिरी गरुड़ भारी हथियारों से तबाही मचाता है। ये आगे बढऩे की तकनीक होती है।
इसे कैटर पिलर पैंतरा कहते हैं। पोर्टेबल लेजर डेजिग्नेशन सिस्टम एक दूरबीन का काम करता है, जो फाइटर प्लेन से जुड़ा होता है। इसके द्वारा कमांडो अपने दुश्मन को जमीन पर 20 किमी तक देख सकता है। इसके बाद कमांडोज टारगेट सेट करते हैं। फाइटर प्लेन उनका खात्मा करता है। आर्मी फोर्सेस से अलग ये कमांडो काली टोपी पहनते हैं। इन्हें मुख्य तौर पर माओवादियों के खिलाफ मुहिम में शामिल किया जाता रहा है।
इजराइल से मंगाए जाते हैं खास हथियार
एनएसजी Commando के लिए हथियार खास तौर पर इजराइल से मंगाए जाते हैं। ये रात के अंधेरे में भी खतरनाक ऑपरेशन्स को अंजाम दे सकते हैं। ये फोर्स एक मशीन की तरह काम करती है। जिसके पुर्जे एक-दूसरे से मिले होते हैं।
फिजिकल ट्रेनिंग
फिजिकल ट्रेनिंग- NSG Commando लिए उम्र 35 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। सबसे पहले फिजिकल और मेंटल टेस्ट होता है। 12 सप्ताह तक चलने वाली ये देश की सबसे कठिन ट्रेनिंग होती है। शुरूआत में जवानों में 30-40 प्रतिशत फिटनेस योग्यता होती है, जो ट्रेनिंग खत्म होने तक 80-90 प्रतिशत तक हो जाती है
फिजिकल ट्रेनिंग के बाद होता है इंटरव्यू
कमांडोज की टे्रनिंग बहुत ही कठोर होती है। जिस तरह से आईएएस चुनने के लिए पहले प्री-परीक्षा होती है, फिर मेन और अंत में इंटरव्यू। जिसका शायद सबसे बड़ा मकसद यह होता है कि अधिक से अधिक योग्य लोगों का चयन हो। ठीक उसी तरह से कमांडोज फोर्स के लिए भी कई चरणों में चुनाव होता है। सबसे पहले जिन रंगरुटों का कमांडोज के लिए चयन होता है, वह अपनी-अपनी सेनाओं के सर्वश्रेष्ठ सैनिक होते हैं। इसके बाद भी उनका चयन कई चरणों में गुजर कर होता है। अंत में ये सैनिक टेनिंग के लिए मानेसर पहुंचते हैं तो यह देश के सबसे कीमती और जांबाज सैनिक होते हैं।
15-20 फीसदी सैनिक अंतिम दौड़ तक पहुंचने में रह जाते
जरूरी नहीं है कि टे्रनिंग सेंटर पहुंचने के बाद भी कोई सैनिक अंतिम रूप से कमांडो बन ही जाए। नब्बे दिन की कठोर टेनिंग के पहले भी एक हफ्ते की ऐसी टे्रनिंग होती है जिसमें 15-20 फीसदी सैनिक अंतिम दौड़ तक पहुंचने में रह जाते हैं। लेकिन इसके बाद जो सैनिक बचते हैं और अगर उन्होंने नब्बे दिन की टेनिंग कुशलता से पूरी कर ली तो फिर ये सैनिक ऐसे खतरनाक कमांडोज में ढलते हैं जिनकी डिक्शनरी में असफलता जैसा कोई शब्द कभी होता ही नहीं।
नब्बे दिन की विशेष ट्रेनिंग सफलतापूर्वक पूरी करनी होती है
एनएसजी कमांडोज कीे ट्रेनिंग कितनी कठिन होती है, इसको कुछ तथ्यों से समझा जा सकता है। किसी भी चुने हुए रंगरुट को एनएसजी कमांडो बनने से पहले नब्बे दिन की विशेष टेनिंग सफलतापूर्वक पूरी करनी होती है जिसकी शुरुआत में 18 मिनट के भीतर 26 करतब करने होते हैं और 780 मीटर की बाधाओं को पार करना होता है। अगर चुने गये रंगरुट शुरुआत में यह सारा कोर्स बीस से पच्चीस मिनट के भीतर पूरा नहीं करते, तो उन्हें रिजेक्ट कर दिया जाता है। जबकि टेनिंग के बाद इन्हें अधिक से अधिक 18 मिनट के भीतर ये तमाम गतिविधियां निपटानी होती हैं।
ए श्रेणी हासिल करनी है तो नौ मिनट में पूरा करना होता है कोर्स
अगर किसी कमांडो को ए-श्रेणी हासिल करनी है तो उसे यह पूरा कोर्स नौ मिनट के भीतर पूरा करके दिखाना होता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस प्रारंभिक कोर्स में जो बाधाएं होती हैं, वे सब एक जैसी नहीं होतीं। इन बाधाओं में कोई तिरछी होती है तो कोई सीधी। कोई ऊंची होती है तो कोई जमीन से सटी हुई। अलग-अलग तरह की 780 मीटर की इस बाधा को एनएसजी के टेनिंग रंगरूट को अधिकतम 25 मिनट के भीतर और अच्छे कमांडोज में शुमार होने के लिए 9 मिनट के भीतर पूरी करनी होती है।
50-62 हजार जिंदा कारतूसों का फायर प्रैक्टिस में प्रयोग करना होता है
किसी भी चुने गए NSG कमांडो को नब्बे दिनों की अनिवार्य ट्रेनिंग के दौरान पचास से बासठ हजार जिंदा कारतूसों का अपनी फायर प्रैक्टिस में प्रयोग करना होता है। जबकि किसी सामान्य सैनिक की पूरी जिंदगी में भी इतनी फायर प्रैक्टिस नहीं होती। कई बार तो एक दिन में ही एक रंगरूट को दो से तीन हजार फायर करनी होती है।
मानसिक ट्रेनिंग होती है सबसे सख्त
कमांडोज की मानसिक टेनिंग भी बेहद सख्त होती है। उनमें कूट-कूट कर देशभक्ति का जज्बा भरा जाता है। अपने कर्तव्य के प्रति ऊंचे मानदंड रखने की लगन भरी जाती है। दुश्मन पर हर स्थिति में विजय प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा भरी जाती है और अंत में अपने कर्तव्य के प्रति हर हाल में ईमानदार बने रहने की मानसिक टे्रनिंग दी जाती है। इस दौरान इन कमांडोज को बाहरी दुनिया से आमतौर पर बिल्कुल काट कर रखा जाता है। न उन्हें अपने घर से संपर्क रखने की इजाजत होती है और न ही उन सैन्य संगठनों से, जहां से वे आए होते हैं
भारतीय थल सेना :पैरा कमांडो
पैरा SF कमांडो भारतीय सेना की पैराशूट रेजीमेंट की स्पेशल फोर्स की यूनिट है जिसके जिम्मे स्पेशल ऑपरेशन, डायरेक्ट एक्शन, बंधक समस्या, आतंकवाद विरोधी अभियान, गैरपरंपरागत हमले, विशेष टोही मुहिम, विदेश में आंतरिक सुरक्षा, विद्रोह को कुचलने, दुश्मन को तलाशने और तबाह करने जैसे सबसे मुश्किल काम आते हैं। पैसा कमांडो की तरह नौसेना के पास मारकोस तो एयरफोर्स के पास गरुड़ कमांडो है। ये स्पेशल फोर्स देश ही नहीं, विदेशों में भी कई बड़े ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुकी है। बुधवार की रात इस टीम ने जो कारनामा किया, उसे तो देश लंबे वक्त तक याद रखेगा।
पैरा की अपनी यूनिट और सेना की दूसरी यूनिटों से जवान लिए जाते हैं। पूरे तीन महीने तक सेलेक्शन चलता है। इस दौरान थकावट, मानसिक और शारीरिक यातना आदि सभी दौर से गुजारा जाता है। शरीर पर 60 से 65 किलो वजन और 20 किलोमीटर की दौड़ से पैरा कमांडो के दिन की शुरुआत होती है। एक पैरा कमांडो की ट्रेनिंग काम के साथ-साथ साढ़े तीन साल तक चलती रहती है। उसके बाद भी वक्त के हिसाब से कमांडो को अपडेट किया जाता रहता है। एक पैरा कमांडो को साढ़े 33 हजार फुट की ऊंचाई से कम से कम 50 जंप लगानी जरूरी होती हैं। एयरफोर्स के पैरा ट्रेनिंग स्कूल आगरा में इन्हें ट्रेनिंग दी जाती है। पानी में लड़ने के लिए नौ सेना डाइविंग स्कूल कोच्चि में ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के दौरान ही करीब 90 प्रतिशत जवान ट्रेनिंग छोड़ जाते हैं। कई बार ट्रेनिंग के दौरान ही जवानों की मौत भी हो जाती है।
पैरा कमांडो के कुछ बड़े ऑपरेशन
बांग्लादेश मुक्ति संग्राम, दिसंबर 1971: पाकिस्तान की सेना के खिलाफ 16 दिन लड़ा गया यह दुनिया का सबसे छोटा युद्ध था। इस लड़ाई में पाकिस्तान के करीब 90 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था और बांग्लादेश को आजादी मिली थी
ऑपरेशन ब्लूस्टार, पंजाब 1984: ये ऑपरेशन 1984 में एक जून से आठ जून तक चला। इस दौरान स्वर्ण मंदिर में छिपे आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके साथियों को खत्म कर इस पवित्र गुरुद्वारे को उनके कब्जे से आजाद कराया गया।
ऑपरेशन पवन 1987: श्रीलंका में लिट्टे के खिलाफ पैरा कमांडो ने इस ऑपरेशन पवन को अंजाम दिया। इस ऑपरेशन का मकसद भारत से गई शांति सेना की मदद करना था।
ऑपरेशन कैक्टस 1988: तीन नवंबर की रात इस ऑपरेशन को मालदीव में अंजाम दिया गया था और वहां तख्तापलट की कार्रवाई को फेल किया गया। इसके लिए आईएल-76 जहाज से पैरा कमांडो मालदीव भेजे गए थे।
ऑपरेशन रक्षक 1995: इसे कश्मीर में अंजाम दिया गया था। आतंकवादियों ने कुछ लोगों को बंधक बना लिया था। बंधकों को छुड़ाने के लिए पैरा कमांडो की टीम भेजी गई थी।
कारगिल युद्ध, 1999: जुलाई-1999 में कश्मीर में कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तान की फौज ने कब्जा कर लिया। इस लड़ाई में पाक फौज और आतंकवादियों के खिलाफ पैरा कमांडो का इस्तेमाल हुआ जिसके चलते एक बार फिर पाक को भारत के हाथों मुंह की खानी पड़ी।
ऑपरेशन खुखरी 2000: ऑपरेशन खुखरी जुलाई 2000 में सियारा लियोन में किया गया। वहां काम कर रही संयुक्त राष्ट्र की फौज को विद्रोहियों ने घेर लिया था। जिसके बाद पैरा कमांडो ने पहुंचकर ऑपरेशन खुखरी को अंजाम दिया।
म्यांमार 2015: 4 जून, 2015 को मणिपुर में उग्रवादियों ने देश के 18 जवानों को शहीद किया। इसका बदला लेने का काम पैरा कमांडो को सौंपा गया। इन कमांडो ने म्यांमार सीमा में घुसकर 38 उग्रवादियों को ढेर कर दिया।
पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक – उरी हमले के बाद पाकिस्तान ने एयर स्ट्राइक को अंजाम देने की जिम्मेदारी इसी कमांडो दस्ते ने उठाई थी
भारतीय वायुसेना गरुड़ कमांडो
गरुड़ कमांडो का नाम भारत के शौर्यशाली और पराक्रमी कमांडो में लिया जाता है. यह फोर्स भारतीय वायुसेना के अंतर्गत एक स्पेशल यूनिट है जिसकी स्थापना 5 फरवरी 2004 को की गई थी. एयर फोर्स का यह कमांडो दस्ता कॉम्बेट सर्च एंड रेस्क्यू, काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन, काउंटर टेरिरिज्म, एयरबोर्न ऑपरेशन, डायरेक्ट एक्शन, फायर सपोर्ट, होस्टेज रेस्क्यू, एयर असाल्ट, एयर ट्रैफिक कंट्रोल, क्लोज क्वाटर कॉम्बेट आदि के लिए अपनी सक्रिय भूमिका निभाती है.
कुछ प्रश्न उत्तर
क्या कमांडो ट्रेनिंग में सैनिकों को सांप खिलाया जाता है
एक हद तक इस प्रश्न का उत्तर हां है| कारण यह है कि भारतीय कमांडो को हर विषम परिस्थिति से निपटने की ट्रेनिंग दी जाती है| कई दिन ऐसे होते हैं जब कमांडो को खाने के लिए कुछ नहीं मिलता है तो जंगलों में सरवाइव करने के लिए इस प्रकार की ट्रेनिंग दी जाती है
क्या कमांडो ट्रेनिंग में यातनाएं दी जाती है
ट्रेनिंग शब्द को यातना कहना ठीक नहीं होगा| यह सैनिक को मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से सुदृढ़ और अधिक सक्षम बनाने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है| और इस ट्रेनिंग के नियमों का कठोरता के साथ पालन किया जाता है| इसीलिए जिन युवाओं में जुनून होता है वही कमांडो ट्रेनिंग के लिए आगे आते हैं| कमांडो ट्रेनिंग के दौरान सैनिक को एक कठिन दौर से गुजरना पड़ता है जिसमें उसके मानसिक और शारीरिक क्षमता का अविश्वसनीय रूप से विकास किया जाता है| सोने के लिए बहुत कम समय मिलता है शरीर और मस्तिष्क को इस तरीके से ढाला जाता है कि भारतीय सैन्य बल का किसी भी सेना का कमांडो किसी भी विषम परिस्थिति में अपनी क्षमता का उत्तम प्रदर्शन कर सकें