भारतीय इतिहास में दिल्ली सल्तनत की शुरुआत- गुलाम वंश

उत्तर प्रदेश समीक्षा अधिकारी सहायक समीक्षा अधिकारी परीक्षा, उत्तर प्रदेश ब्लॉक एजुकेशन ऑफीसर BEO, पीसीएस परीक्षा तथा दरोगा परीक्षा में भारत के मध्यकालीन इतिहास के दिल्ली सल्तनत काल के कई प्रश्न पूछे जाते हैं| इस पोस्ट में हम गुलाम वंश के सभी शासकों के उपलब्धियां तथा उनके शासनकाल के बारे में आपको अवगत कराएंगे| अमूमन इस भाग से परीक्षाओं में एक से दो प्रश्न पूछे ही जाते हैं| जिसमें से परीक्षा की दृष्टि से कुतुब इन ऐबक, इल्तुतमिश और बलबन बहुत ही महत्वपूर्ण है

दिल्ली सल्तनत की शुरुआत गुलाम वंश से होते हुए लोदी वंश तक जाती है| अगर इन्हें क्रमानुसार देखा जाए तो निम्नलिखित क्रम बनता है

  • गुलाम वंश
  • खिलजी वंश
  • तुगलक वंश
  • लोदी वंश

1206 ईस्वी से लेकर के 1290 ईसवी तक दिल्ली सल्तनत के सुल्तान गुलाम वंश के सुल्तानों के नाम से विख्यात हुए| जिसका संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक था| यद्यपि वह सब एक ही वंश के नहीं थे वह सभी तुर्क थे| इन मामलूक वंश भी कहा जाता है|

कुतुबुद्दीन ऐबक 1206-1210 गुलाम वंश या मामलूक वंश

  • कुतुबुद्दीन ऐबक सुरीली आवाज में कुरान का पाठ करता था इसीलिए उसे कुरान खान का भी नाम दिया गया | गुलाम वंश की स्थापना का श्रेय इसी को जाता है
  • उसने अजमेर में डाई दिन का झोपड़ा बनवाया
  • कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में कुतुब मीनार का निर्माण कराया
  • अपने उदारता के कारण उसे लाख बक्स कहा गया
  • कुतुबुद्दीन ऐबक ने स्वयं को कभी भी सुल्तान घोषित नहीं किया
  • इसकी राजधानी लाहौर थी जो कि उस वक्त भारत का हिस्सा था

इल्तुतमिश- गुलाम वंश 1210 से लेकर के 1236 ईसवी तक

  • इसे दिल्ली सल्तनत के पहले सुल्तान के रूप में जाना जाता है
  • इसने लाहौर से दिल्ली राजधानी को शिफ्ट किया
  • इल्तुतमिश इलबरी जनजाति का तुर्क था
  • सुल्तान बनने से पहले वह बदायूं का सूबेदार था
  • खोखर जाति के विद्रोह को दबाने के लिए उसने कुतुबुद्दीन ऐबक तथा मोहम्मद गोरी का साथ दिया और साहस का परिचय दिया जिस पर मोहम्मद गोरी ने उसे दासता से मुक्त मुक्त करने का आदेश दिया
  • मंगोल नेता चंगेज खान भारत के उत्तर पश्चिम सीमा पर इल्तुतमिश के शासनकाल में आया था
  • इल्तुतमिश ने ही सर्वप्रथम अरबी सिक्के का चलन शुरू किया
  • चांदी का तंका तथा तांबे की जीतल इल्तुतमिश नहीं प्रारंभ की
  • डॉक्टर आरपी त्रिपाठी के अनुसार भारत में मुस्लिम संप्रभुता का इतिहास इल्तुतमिश के ही समय से आरंभ होता है
  • इल्तुतमिश को गुलामो का गुलाम कहा गया
  • इक्तादारी प्रथा का प्रचलन शुरू किया था इल्तुतमिश ने
  • इल्तुतमिश का पूरा नाम शम्स-उद-दीन इल्तुत्मिश था
  • इल्तुतमिश ने बिहार में अपना प्रथम सूबेदार नियुक्त किया था मलिक जानी को
  • चंगेज खान का पूरा नाम था तेमुजीन
  • 1229 ईस्वी में इल्तुतमिश को बगदाद के खलीफा से खिलअत का प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ जिससे इल्तुतमिश वैध सुल्तान और दिल्ली सल्तनत स्वतंत्र राज्य बन गया

रुकनुद्दीन फिरोज

  • इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद कुछ दिन रुकनुद्दीन फिरोज का शासन रहा, परंत उसकी अयोग्यता  के कारण तुर्की अमीरों ने रजिया बेगम को दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया।

रजिया सुल्तान – रजिया अल-दिन(1236-1240 ई)

  • रजिया सुल्तान गुलाम वंश के शासक इल्तुतमिश की पुत्री थी|
  • इतने इस्लामिक परंपराओं के खिलाफ जाकर के शासन कार्य संभाला
  • यह दरबार में बिना किसी नकाब के आती थी
  • दिल्ली दरबार के तुर्कों को इल्तुतमिश का किसी महिला को वारिस बनाना नामंज़ूर था, इसलिए उसकी मृत्यु के पश्चात उसके छोटे बेटे रक्नुद्दीन फ़िरोज़ शाह को राजसिंहासन पर बैठाया गया।
  •  रजिया ने पर्दा प्रथा का त्याग कर पुरषों कि तरह चोगा (कुर्ता)(काबा) कुलाह (टोपी) पहनकर दरबार में खुले मुंह जाने लगी
  • आंतरिक विद्रोह तथा महिला होने के कारण रजिया सुल्तान सिर्फ लगभग 3 वर्ष ही शासन कर पाई| बाद में उसे भागना पड़ा और डाकू द्वारा उसकी हत्या कर दी गई

मुइजुद्दीन बरहमशाह 1240-42 ई०

  • यह रजिया सुल्तान का भाई था
  • 13 मई 1242 को बरहम शाह की हत्या कर दी गई

अलाउद्दीन मसूद शाह 1242 से लेकर के 1246 ई

तुर्की शासक था, जो दिल्ली सल्तनत का सातवां सुल्तान बना। यह भी गुलाम वंश से था। इसने 1242-1246 तक दिल्ली सल्तनत में राज्य किया। इसके समय में शासन पर नियंत्रण तुर्कान -ए-चिलगामी का राज था | यह बरहमशाह का पुत्र था

नासिरुद्दीन महमूद 1246-65 ई०

  • इसको गद्दी पर बलबन ने बिठाया था| इसने लगभग 19 साल तक शासन किया
  • तबकात ए नासिरी मिनहाज उस सिराज का ग्रंथ है जो सुल्तान नसरुद्दीन को समर्पित है|

बलबन- पूरा नाम गयासुद्दीन बलबन 1266 से लेकर के 1287 ई

  • बलबन ने रक्त और लौह की नीति अपनाई Imp Question ARO/RO 2013-2016
  • बलबन का पूरा नाम गयासुद्दीन बलबन था
  • बलबन के राजत्व के सिद्धांत के अनुसार सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्रदत होता है
  • और सुल्तान का निरंकुश होना आवश्यक है सुल्तान पृथ्वी पर अल्लाह का प्रतिनिधि या नियामत खुदाई है
  • अपनी शक्ति को समेकित करने के बाद बलबन ने जिल्ले इलाही की उपाधि धारण की| Imp Question ARO/RO 2023
  • बल बल में फारस के लोक प्रचलित वीरों से प्रेरणा लेकर अपना राजनीतिक आदर्श बनाया|
  • गढ़मुक्तेश्वर की मस्जिद की दीवारों पर अपने शिलालेख में स्वयं को खलीफा का सहायक कहा है बलबन ने UPPSC ARO 2017
  • बलबन के काल में एकमात्र विद्रोह हुआ था 1279 में बंगाल जिसको किया था सूबेदार तू ग्रिल खान ने इस विद्रोह को बलबन ने दबा दिया था और विद्रोहियों को मृत्युदंड दिया था
  • बलबन ने पाबोस – सुल्तान के पैरो को चूमना की नीति आरंभ की (Very Important Question UPPSC ARO/ARO , PCS Exam)
  • बलबन ने भारत में प्रसिद्ध फारसी त्योहार नौरोज़ को आरंभ करवाया (Very Important Question UPPSC ARO/ARO , PCS Exam)
  • उसने सजदा प्रथा को भी प्रारंभ किया जिसने भूमि पर लेटकर सुल्तान का अभिवादन किया जाता था (Very Important Question UPPSC ARO/ARO , PCS Exam)
  • बलबन के अन्य नाम भी थे जैसे उलूग ख़ान , और उसका वास्तविक नाम बहाउद्दीन था |
  • इल्तुतमिश की तरह बलबन भी इलबरी जनजाति का तुर्क था
  • तुर्कान-ए-चिहलगान को बलबन ने नष्ट कर दिया। (Very Important Question UPPSC ARO/ARO , PCS Exam)
  • बलबन ने मंगोलों के आक्रमण की रोकथाम करने के उद्देश्य से उत्तर पश्चिम सीमा पर सुदृढ़ दुर्गों का निर्माण करवाया था

दिल्ली सल्तनत- बिंदु

  1. भारत में पोलो खेल या चौगान का प्रारंभ तुर्को ने किया था| कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु भी इसी चौहान खेल को खेलते वक्त घोड़े से गिरकर हुई थी
  2. दस्तार बंदान – सल्तनत काल में ऊंचे धार्मिक और न्यायिक पदों पर बैठे हुए उलेमा को सामूहिक रूप से दस्तार बंदान कहा जाता था| दस्तार बंदान – का अर्थ होता है पगड़ी पहनने वाला क्योंकि वह सिर पर आधिकारिक रूप से पहनी जाने वाली पगड़ी धारण करते थे

तो दोस्तों यह थी जानकारी भारतीय इतिहास में दिल्ली सल्तनत की शुरुआत- गुलाम वंश के बारे में| इस पोस्ट की अगली कड़ी में हम आपसे खिलजी वंश के बारे में विस्तार से बात करेंगे|

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